पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/११८

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वेद भगवान् का सार है, जिसके चौबीस अक्षरों में दशे, चौबीस अवतार विराजमान हैं उसकी स्तुति क्या ? भक्तिपूर्वक, एकाग्र चित्त से, निश्चेष्ट होकर यदि तेरा ध्यान किया जाय तो तेरे अक्षर अक्षर में परब्रह्म परिपूर्ण हैं। तू उस पर मात्मा का अक्षम चित्र है । मैं विशेष या कहूँ ? माता सच कहता हूँ तू वास्तव में ब्राह्मण बालकों से रूठ गई है । इसमें दोष तेरा नहीं, मैं छाती ठोककर कहता हूँ हमारा है । हमने तुझको भुला दिया। हममें से अब हजारों लाखों तेरा शुद्ध उच्चारण तक नहीं जानते । कहने में पाप हेाता है परंतु वे यहाँ तक नहीं जानते कि गायत्री किस चिड़िया का नाम है । यदि दीन दुनिया की हाय हाय छोड़कर नित्य हम लोग तेरा नियमित जप भी कर लिया करे तो आठों सिद्धियां, नवो निधियाँ हमारी चेरी हैं। हम ब्राह्मयों को किसी के आगे हाथ पसारना न पड़े, पाई पाई के लिये रिरियाना न पड़े। एक दो नहीं, अब भी सैकड़ों ऐसे देखे जाते हैं जिनका मस्क केवल तेरे जप के अखंड प्रकाश से देदीप्यमान है। केवल तेरे भरोसे वे संसार को तुच्छ समझते हैं। इसलिये माता, दोश हमारा है। हम कलियुगी हैं, पापी जीव हैं । माता, संसार की स्थिति, लय' और पालन करने के लिये माया स्वरूपा हमारा उद्धार करो । हम बुरे हैं तो और भले हैं तो तेरे हैं । हमने न सही तो हमारे पूर्वजों ने तेरे जप की कमाई कर बहुत संग्रह किया है। हे माँ ! रक्षा करें ।"