पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१२६

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से मोरी में गिर गया। मोरी में पड़ा हुआ पैसा वह कदापि न उठाती परतु इधर उधर अच्छी जगह में गिर गया हो तो उठा लू, इस इच्छा से जब वह उसे आँखें फाड़कर ढूँढ़ रही थी तब ही मैं वहाँ आ पहुँचा। मैं उसे अकेली पाकर "जान सहब!" कह दिया करता था और वह भी इसका मतलब न जानकर नाराज होने के बदले हँस दिया करती थीं। उस दिन जब उससे मैंने ऐसा कहा तो उसने "अब" से लेकर "इति" तक सारा किस्सा सुनाने के अनंतर "भैया तू ही ढूंढ" कहकर रो दिया। मैंने उसे दिलासा देकर गोदी में उठाया, अपने रूमाल से उसके आँसू पोंछे और "जान साहब रोता मत ! पैसा गया तो तुम्हारे लिये रुपया हाजिर है ।" कहते हुए जेब में से रूपया निकालकर उसे देते छुए ज्योही मैंने उसके गालों का चुंबन करने के लिये मुंह फैलाया त्योही वह मेरी गोदी में से छुटककर भागी और यह कहती हुई भागी कि "निपूता यहां भी आ मर ।" बस इससे मैंने समझ लिया कि यदि यह अपने घरवालों के खबर दे देगी और इस बात को मेरे पिता जान जायंगे तो पिटते पिटते मेरी जान निकल जायगी । मैं झूठी बातें बनाकर अपना बचाव कर लेने में उस्ताद हूँ । बस इसी समय मैंने उससे कह दिया कि मेरी में से बेर उठाकर यह खा रही थी, मैंने इसे पकड़कर छीन लिया। बस इसी लिये पिटने के डर से मुझ पर इज़जाम लगाती है । वास्तव में वह माता पिता की मार