पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१३२

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कह देती है। दोनों में सगी बहले से भी बढ़कर प्रेम हैं । यों मूर्ख, लड़ाकू और कलहिनी स्त्रियाँ लड़ाई मोल ले लेकर आपस में उलझ पड़ती हैं। हवा से लड़ने लगती हैं। सुखदा भी पहले इन बातों के लिये सरनाम थी । परंतु अब इनमें न पैसे के लिये लड़ाई है, न बालकों के लिये लड़ाई है और न काम काज के लिये । काम काज करने के लिये "मैं करूंगी ! मैं कहूँगी" ?, की कभी प्रेमपूर्वक उलझन हो जाय तो जुड़ी बात है किंतु सब अपना अपना काम पहले से कर लेती हैं। अपना करके दूसरी का भी करने दौड़ती हैं। "रुपए पैसे और खर्च की बात आदमी जाने ।" हमें कुछ मतलब नहीं । जो काम हमारे जिम्मे के हैं उनका ही निपटाना कठिन है ।" यहीं दोनों की राय हैं । अब काम से अवकाश निकालकर सुखदा जीजी से पढ़ना लिखना सीखती हैं, सींचा पिरोना सीखती है और दस्तकारी के अनेक काम सीखती है। बालकों के पालन पोषण में नौकर नौकरानियों तक को यह मालूम नहीं होने पाया कि कौन किसका बच्चा है। उन बच्चों में भी न मालुम क्या नैसर्गिक प्रेम है । दोनों खाते साथ हैं, सोते साथ हैं, जागते साथ हैं, रोते साथ हैं और दूध पीने का भी उनका एक विचित्र ढंग है। एक बच्चा जब एक घूट पी लेता है तब दूसरे की ओर इशारा करता है । हजार कोशिश करो किंतु जब तक दूसरा एक घूंट न पी ले तब तक वह कटोरी मुंह को छूने तक नहीं देता ।