पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१३४

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समय के अनुसार घोड़ा बहुत परिवर्तन भले ही कर दिया जाय परतु बालके के। उसी ढंग की शिक्षा मिलनी चाहिए जैसी "हिदूं गृहस्थ" में हरसहाय को दी गई है। जब तक विश्वविद्यालय की शिक्षा-प्रणाली का उचित संशोधन न हो जाय तब तक पास का पुछल्ला लगाना वह चाहे अनावश्यक, निरर्थक, निकम्मा, हानिकारक और बोझा ही क्यो न समझे किंतु जब आजकल परीक्षा के बिना योग्यता की नाप नहीं होती और हर जगह सर्टिफिकेट रूप लकड़ी की तलवार अपेक्षित होती है तब स्कूल और कालेज की शिक्षा दिलाए बिना काम न चलेगा । इस बात को पंडित जी अच्छी तरह जानते हैं किंतु “हिंदू गुहस्थ" के अनुसार बालक को सदाचारी, धार्मिक और कार्यकुशल बनाने के लिये, कमाऊ पुल बनाने के लिये जिन बातों की आवश्यकता है उन्हें पहले घर पर सिखा पाकर तैयार कर देना चाहिए। इसी उद्देश्य से पंडित जी ने दोनों बालक को पहले घर पर शिक्षा दिलाई फिर परीक्षा दिलाकर डिगरियाँ दिलाई।

इस तरह तैयार होकर क्योंकर बडे कमलानाथ और छाडे इंदिरानार्थ परमेश्वर की भक्ति में, माता पिता की सेवा करने में कुटुंब का पालन करने में और लोकोपकार में प्रवृत्ते हुए, कब और किस तरह से कहा किस किस के साथ उनके विवाह हुए और कैसे उन्होंने दुनिया की नीच ऊँच देखकर अनुभव प्राप्त किया,सो नसूना खड़ा कर देना एक जुड़े उप