पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१३५

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न्यास का विपय है। मैं नहीं कह सकता कि इस बात का एश किसे मिलेगा । हां साहित्य का मैदान तैयार है और लेखनी के घोड़े की बाग भी ईश्वर की कृपा से अब एक नही, अनेक लेखकों के हाथ में है। यदि इस कार्य में किसी को सफलता का यश लेना हो तो कल्पना के भरोसे अच्छी खासी "राम लक्ष्मण की जोडी" तैयार हो सकती है, वाल्मीकीय रामायण के से मर्यादापुरूषोत्तम नही क्योंकि उसमें कल्पना का लेश नहीं, वह उपन्यास नहीं इतिहान है। रामलीला के से राम लक्ष्मण नहीं क्योंकि उसमें भगवान् के चरित्रों की छाया है किंतु आजकल के समय के अनुसार दो भाइयों के जोड़ी, सज्जनों की जोड़ो, धार्मिकों की, लोकोपकारको की जोड़ी की कथा कही जा सकती है ।

अस्तु ! यह इतना अवश्य लिखना चाहिए कि अपनी योग्य संतानो के नीरखकर पंडित, पंडितायिन, कांतानाथ और सुखदा राग में प्रवृत्त नहीं हो गए हैं। कांतानाथ जब छोटे भाई और सुखदा जब छोटी बहू है तब उन्हें औरों के आगे हिंदू गृहस्थी की प्राचीन परिपाटी के अनुसार प्रेम विह्वल हो जाने का अवसर ही क्यों मिलने लगा !दंपती जब अकेले होते हैं तब आपस में आमेद प्रमोद की बातें करते हैं, हँसी दिल्लगी करते हैं और अपने लड़के का प्यार भी करते हैं किंतु भाई भौजाई के समक्ष नहीं, बड़े बूढ़ों के सामने नहीं । कभी बालक का हँसना बोलना देखकर भौजाई के सामने कांता