पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१३०)

गोते लगाया करते हैं । उनका सिद्धांत यही है किंतु वह अपने मन को ---

"पातालमाविशति यासि नभो विलंध्य
दिल्लमंडलं ब्रजसि मानस चापलेन ।
धांत्या तु यातु विमलं न तुल्मलीन्यं ।
तद्व्रह्म संस्मरसि निवृतिमोष येन ।।"

की रट लगाकर प्रबंध दिया करते हैं।