पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१४३

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ताई केवल इसलिये स्वीकार की थी कि उसमें भगवान् मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्रजी का जन्म होनेवाला था । यदि अब भी हम लोग दान दक्षिाणा के लिये यजमान के द्वार पर घंटों तक रिदियाने, हाथ फैलाने से हाथ खैंच लें तो निःसंदेह उन ऋषियों का सा अदर पा सकते हैं, जो लोग हम पर स्वार्थ का कलंक लगाते हैं उनके मुख पर अच्छीछी खासी बपत लग सकती हैं। अब विश्वंभर है। राजा और रंक को भूखा जगाता है, भूखा सुलाता नहीं । ब्राह्मण में अब भी सैकड़ों, हजारों ऐसे हैं कितनी ही जातियाँ ऐसी हैं जो ब्राह्मणों की वृत्ति नहीं करती, इस जीक्षिका से पेंट नहीं भरर्ती, उनका योगोक्षेम अच्छी तरह चलता है। वे दान लेनेवालों से अच्छे हैं। यदि हम लोग केवल आत्मकल्याण के लिये बेदादि शास्त्रों का अध्ययन करें, यथाशक्ति यज्ञादि कर्म करते हैं और योग्यों को दान दें तो ऐसे धंधे से जिनके करने से ब्रह्मांडयात्व पर दोष न आवे अपना अच्छी तरह निर्वाह कर सकते हैं। अब भी ब्राह्मणों में भगवान् भुजनभास्कर का सा ब्राह्मयात्ना प्रकाशमान है। ऐसा करने से उनका महत्व बढ़ेगा, और उनके सदाचार से, उनकी सुशिक्षा से, उनकी निःस्वार्थता से संसार उनके पैरों पर मस्तक नवावेगा। अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है, अब भी नई रोशनीवालों में, नई नई उन्नतियों, राजदबारों में, और और वर्ण से ब्राह्मण का ऊँचा आसन है । जो कार्य वे कर रहे हैं वे कर सकते हैं, वह दूसरे वर्षों से