पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१४४

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नहीं हो सकता। भारतवर्ष की यावत् उन्नतियां के अगुआ अब भी ब्राह्मण हैं । अँगरेजी की उच्च शिक्षा ब्राह्मणों में अधिक है ।”

“निस्संदेह यथार्थ है परंतु तव करना क्या चाहिए ? क्या ज्योतिष पर गुजारा किया जाय ? इससे भी ते पेट भरना कठिन है। जब फल ही नहीं मिलते तब लोग देने भी क्यो लगे ? और झूठी बातें बनाना अच्छा नहीं !"

“हाँ मैं भी मानता हूँ । वास्तव में यदि फलित ज्योतिष को ठीक ढंग पर न लाया जायगा तो किसी न किसी दिन यह शास्त्र भी हमारे हाथ से गया समझी । लोगों की श्रद्धा उठती जाती है और जिन्हें अँगरेजी की थोड़ी सी ए, बी, सी, डी, पढ़ ली हैं वे इसका मर्म न समझकर इसे वाहियात असंभव बतलाकर पूर्वंजों की निंदा करते हैं, ब्राह्मणु को ठग बतलाते हैं। परंतु क्या इसमें दोष शास्त्र का है ? क्या शास्त्र ही मिथ्या हैं ? अथवा उसका संस्कार दूषित हो गया हैं ? अथवा पढ़ने वालों की ही अयोग्यता है ? मेरी समझ में शास्त्र का दोष नहीं क्यों कि वच्च सत्य है । निर्विवाद सत्य है । हाँ ! पढ़नेवाले अवश्य अपराधी हैं। वे पढ़े बिना ही अथवा ज्योतिष का ककहरा सीख कर ही झूठ मूठ मीन, मेष, वृष अपनी अँगुलियों पर गिनकर भविष्यद्भुक्ता बन बैठते हैं। उनके स्वार्थ से हिंदुओं के सब धर्मकार्य धूल में मिले जाते हैं।"

"परंतु क्या फलित ज्योतिष के फल न मिलने के अपराधी वे ही लोग हैं ?"