पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१३७)

का ग्रहण का समय नहीं मिलता, ग्रहों के उदयास्त नहीं मिलते, ऋतु में अंतर रहता है। ऐसे अंतर की भूल से मुहूर्त ठीक नहीं दिए जाते और जन्म का समय ठीक न होने से जन्मपत्र के, वर्ष के फल नहीं मिलते ।"

“तब, इसके उपाय ?" "उपाय दो हैं। एक विलायत के पंचांगों से अपने पंचांगों का मिलान कर अंतर निकाल लेना । काशी के और दक्षिण के ज्योतिषी "नाटिकेल अलमानक" की सहायता से पंचांग बनाते हैं। उनका गणित मिलत्ता जुलता हैं परंतु जैसा मल्ल ग्रहों का प्रयक्ष वेद करने से हो सकता है वैसा नहीं । इदलिये आवश्यकता इस बात की है कि उन्नयनी, जयपुर अथवा काशो की वेधशाला में प्रसिद्ध प्रसिद्ध ज्योतिषी इकट्टे होकर दूरबीनों के सहारे ग्रहों का वेध करें और तव नया कारण ग्रंथ तैयार किया जाय । एक बार बंबई में समस्त ज्योतिषि ने इकट्ठ होकर विचार भी किया था परंतु उत्साहहीनता से, धनाभाव से और आपस की फूट से "टांय टाँय फिस" हो गई। अब भी इस बात का जितना ही शीघ्र उद्योग किया जाय उतना लाभ है । पंचांगों की अशुद्धि से हमारी बड़ी भारी धर्महानि है। और फलित शास्त्र ही झूठा पड़ा जा रहा है सो घलुए में !"

"परंतु मे लिये आपने क्या उपाय सोचा है ?"

"आपके लिये दो उपाय हैं और वे दोनों साथ साथ संपादन हो सकते हैं। सबसे प्रथम तो चिकित्सा । हमारे