पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१४७

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आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा करने में प्रजा का जितना लाभ हैं उतना किसी और तरह से नहीं ! इसकी दवाइयाँ सस्ती, सुलभ और बच्चे बच्चे की जानी हुई हैं । ला चाहे देरी से हो किंतु हावा चिरस्थायी है । परमेश्वर ने यहाँ के निवासियो की जैसी प्रकृति बनाई है उसी के अनुसार इस देश में औपधियाँ भी उत्पन्न कर दी हैं। डाक्टरी इलाज का फायदा चाहे मिनटों ही में क्यों न दिखाई दे जाय परंतु उससे सदा के लिये रोग का विनाश नहीं होता और देश दवाइयाँ बीमारी को जड़ से उखाड़ डालती हैं । सैकड़ों बार के अनुभव से यह साबित हो गया है कि जहाँ असम्मर्थ होकार, हताश होकर, बड़े बड़े डाक्टर हाथ खैंच लेते हैं, जहाँ हजारों रूपया इसलिये भाड़ में जा चुकता है वहाँ टंको की देशी दवा से लाभ होता है। फिर डाक्टरों की फीस और दवा की कीमत का खर्च भी तो बहुत भारी हैं। इधर हमारे राजा महाराजा, धान्नवन, देशहितैषी आयुर्वेद के लिये एक पाई खर्च नहीं करते और उधर हर तरह से डाक्टरी का मदद मिल रही है। जिसकी सहायक सरकार उसका कहना ही क्या ? नही तो देशां इलाज के आगे अब तक उसका पैर ही न जमने पाता ।"

“ह ! राजा महाराजा और देशहितौषियों की उदासीनता है सही परंतु विशेष दोष बैद्यों का है। न वे विधा पढ़ते हैं और न इलाज करना जानते हैं। बस अटरम सटरस दवा देकर टका कमाने से काम । रोगी जीये चाहे मरे । बस