पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१४९

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दवा चाहें संजीवन की जगह हलाहल ही क्येां न हो । न दवा को वैध पहचानते हैं और न पंसारी !और दवा लानेवाले निरे गंवार, जंगली ! फिर पंसारी के यहाँ की दवा की मड़ती नहीं, बिगड़ती नहीं। चाहे कीड़े पड़कर वह दवा विष ही क्यों न हो जाये परंतु जब तक थैली खाली न हो जाय, नई मॅशाने का काम क्या?"

“इसका उपाय मैंने यह सोच है कि जो ओपधियाँ बाजार में अच्छी मिलती हैं उन्हें दिसावर से घोकबंद मंंगवा लेना, जो आबू हरिद्वार धैर बदरीनारायण की ओर मिलने वाली हैं उन्हें वहाँ से इकट्ठा इकट्ठा मंगवाना और जो दुर्मिल हैं उनके बीजों का पता लगा लगाकर अपने बगीचे में वो देना। इसके लिये जितनी आवश्यकता होगी उतनी जमीन निकाल दी जायगी ।”

"और, या ? पहला सवाल रूपए का ही है ।"

“महाराज, यह बड़ा पुण्य कार्य है। इसमें गरीवों को भन्न वस्त्र भी मिलेगा । औषधालय में आनेवाले को दवा मुफ। किसी अमीर के घर जाकर आप इलाज करें अथवा वह मदद के नाम से रूपया दे तो लेने में कुछ हानि नहीं और जब इसका यश फैल जायगा तो विना माँगी मदद मिलने लगेगी ! काम ऐसा होना चाहिए जो दुनिया के लिये नमूना बन जाय । हमारे काम की कोई नकल करे ते खुशी से ! जो सीखना चाहे उसे सिखाने को तैयार है ।"