पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१५०

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"हाँ हाँ ! यह ठीक! परंतु रुपए का सवाल बड़ा टेठा है। सवर तंदुलप्रथमुलाः ।"

“पंडित जी, रुपये की आपने अच्छी चिंता की ! इसके लिये ठाकुर जी मदद देंगे । अभी काम आरंभ करने के लिये हजार दो हजार बहुत हैं। बस जितना चाहिए कांतानाथ से ले लीजिए । मैंने उससे कह दिया है। यदि सुकार्य में लगाते दरिद्र आ जावे तो कल का पता आज ही सही ! रुपया हाथ का मैल है और धर्म में लगाने से बढ़ता है, घटना नहीं ।"

'यह आपकी उदारता है, परोपकार हैं और मुझ अकिचन पर दया है। परंतु हाँ ! दूसरा उपाय ? प्रथम तो उन साधु बालक बालिका के पढाना । क्यों यही ना ?"

“हाँ ! यह तो परोपकार के लिये है परंतु मेरी झूठी प्रशंसा करके काँटों में न घसीटों । प्रशंसा आदमी के लिये जहर है । वह जीते ही मार डालती है। दूसरा कारण ब्राह्मणों का मुख्य कर्तव्य शिक्षा देना, उपदेश देना है। नियत समय पर भगवान् के मंदिर में लोगों के धर्म का उपदेश देना, और जो विधार्थ आपसे जिस शास्त्र का अध्ययन करने आये उसे जी खोलकर पढा़ना । विधादान और ओषधिदान का बड़ा पुण्य है । साथ ही संस्कृत ग्रंथों का भाषांतर करना भी ।”

"वास्तव में आपने उपाय अच्छे बतलाए । यथाशक्ति थोड़ा और बहुत सबका संपादन करूंगा और जब हर बात में सहायता देने के लिये आप जैसे महात्मा तैयार हैं फिर