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के, वकील के घर भरेंगे और चार ही दिन में देख लेना कि जिस घर का आतंक आज दिन बस्ती भर मानती हैं उसी के आदमी दाने दाने के तरसेंगे, औरा की ढोरें चराते फिरेंगे, हल जोतते फिरेंगे ।"

बूढ़े की इच्छा नहीं थी कि उसके सामने सब बेटे पोते अपने जोरू बच्चों को लेकर अलग हो जायें क्योकि वह जानता था कि जिस घर की साख आज लाख की है वह खाक की हो जायगी । तिनके तिनके इकट्ठे करके रस्सी बनाने पर मतवाला हाथी भी बांध सकता है किंतु वे ही तिनके जुड़े पड़ने पर एक चिंउटी को भी नहीं बाँध सकते । इस कारण उसे अपने मित्र की सलाह पसंद न आई । वह यात्रा के परिश्रम से, भूख प्यास सहकर यद्यपि थक गया था, चाहे उसे अब अधिक जीने की आशा नहीं थी और वह इस उमर को पहुँचकर अब घर की ओर से, दुनियादारी से उदासीन भी हो गया था और अब वह "सब तज और हर भज" की ओर अपना मन लगाए हुए था किंतु बूढ़ी हट्ठियों में फिर जवानी का जोश दिखलाकर जी तोड़ परिश्रम से बह सब ठिकाने ले आया। लड़कों को दुनिया की नीच ऊँच दिखलाकर पंडित जी और गौड़बोले ने उन लोगों को बहुत समझाया और तहसीलदार ने भी धमका धमकूकर फिर वैसा ही ढंग डालने में पूरी सहायता दी । ये काम अवश्य चल गया परंतु चला चेपा चापी ही । जिस भगवानदास के नख में भी कभी रोग