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रहिए ।" के अटल सिद्धांत को दृढ़ता से पकड़े हुए है और अपनी हालत में अस्त रहकर "राम राम" जपते हुए दिन रात निकाल देता है ।

यों सज्जनों के सत्संग से बूढ़े बुढ़िया को हर्ष शोक नहीं है किंतु कष्ट देख देखकर उसके अंतरंग मित्र का जी जला करता है । इतने दिनों के अनुभव से उसने ठहरा लिया है। कि "यह राई रत्तों दे डालने का नतीजा है । यदि भवान् थोड़ा बहुत अपने पास रख लेता तो उसके लालच से उसकी वे खातिर हार्वी जिनका नाम !! बस इस विचार से वक्ष एक दिन एक थैली लेकर आया । उसे सबके सामने बजाकर, खोलकर दिखाने के बाद भगवानदास के कान में कुछ कहकर उसने उसके नाम की चपड़ी की मुहर उस पर लगा दी और एक भंडरिया में उसे रखकर ताली बूढे की कसर में बाँध दी। अब लड़के ने बहुतेरी विनती की परंतु इस रकम का हिस्सा न किया गया । "जो हमारी सेवा करेगा वह पावेगा । और को एक कौड़ी नहीं।" कहकर उसने कड़ा हुक्म दे दिया। बस उसी समय से उसकी खातिरे होने लगी । एक के यहाँ से खोर अली हैं दूसरा नया कपड़ा बनवा देता है और तीसरा आधी रात तक चरण चापता है। कोई पंखा झलता है तो कोई मक्खियाँ उड़ाता है। माँ बाप की सेवा करने में एक दूसरे की बदाबदी, होड़होड़ी होने लगी और बूढ़े बुढ़िया को हथेली पर थुका थुकाकर उनकी सेवा होने लगी।