पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१५९

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यह सब कुछ हुआ और अब वृद्ध दंपती को अपनी संतान के लिये कोई विशेष शिकायत भी न रही परंतु जब अमर कहलाने पर भी देवताओं की उमर की अवधि है, जब जिसका नाम उसका नाश अवश्यावी है और जब ये दोनों जीवन की सीमा तक पहुँच चुके हैं तब यदि भगवानदास का काल आ जावे तो क्या आश्चर्य ? वह मर गया और बिना किसी बीमारी विशेष के साधारण ज्वर आकर बात करते करते, "राम राम" की रट लगाते लगाते, मृत्यु की असह्य वेदना के बदले हँसते हँसते मर गया, और ऐसी मौत कि जिसने खबर पाई उसके मुँह से यहीं निकला कि "ऐसी मौत भगवान् सबका दे । जिसे जन्म भर किसी से दीनता न करनी पड़े और जो ऐसे अनायास, बिना कष्ट पाए मर जाय, उसका जीना और मरना दोनों सार्थक हैं। उसे अवश्य स्वर्ग मिलेगा। पुण्यवानों की यही निशानी है।" खैर बूढ़ा तो मरा सो मरा किंतु बुढ़िया की अजब हालत हुई । वह सत्तर वर्ष की डोकरी होने पर हट्टी कट्टो थी । उसे किसी तरह की बीमारी नहीं थी । परंतु पति परमात्मा का परलोकवास होते ही उसने भी संहगमन किया । पति के स्वर्गवास होने की भनक कान में पड़ते ही "अब मैं जीकर क्या करूंगी ? जहाँ वह तहाँ मैं।" कहकर "राम राम" जपते जपते उसने भी शरीर छोड़ दिया। केवल पति-लेवा के सिवाय उसे कुछ मतलब नहीं था। वह विशेष बात भी किसी से नहीं करती थीं बल्कि लोग कहा करते थे