पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६०

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कि उसकी समझ मोटी है परंतु आज उसने दिखला दिया कि पढ़ी लिखी औरत से वह हजार दर्ज अच्छी निकल । दोनों की वैकुंटियाँ साथ निकलीं, दोनों एक ही चिंता में जलाए गए और अपना कर्तव्य पालन करते हुए, दुनिया का यश लूटकर परमेश्वर की भक्ति करते हुए, सीधे स्वर्ग को सिधार गए । विद्या चाहे हो चाहे न हो। । वह विद्या ही किस काम की जिससे परलोक न सुधरे परंतु अपढ़ होकर भी इन्होंने दोनों लोक सुधार लिए । वास्तव में ऐसे ही लोगों का जन्म सार्थक है। धन्य भगवानदास ! धन्य साध्वी ! तुम दोनों के धन्य है ! भारत में ऐसे ही सज्जनों की आवश्यकता है। पातित्रत की पराकाष्ठा है। सरकारी कानून भी परमेश्वर के कानून के आगे कुछ नहीं ।

खैर ! दोनों की मृत्यु के बाद उनकी तेरही है। जाने पर जब इनके बेटों ने थैली सँभाली तब रूपया की आशा में पैसे पाए । थे सब बाप के मित्र से लड़े झगड़े भी कम नहीं, यहाँ तक कि उस पर मुकदमा चलाने को तैयार हो गए किंतु जब भगवानदास का तहरीरी सबूत उसके पास था और जब इसका अस्ली भेद हाकिमों को मालूम था तब उन लोगों की कुछ चली चलाई नहीं । हाँ ! जरा जरा सी बात पर वे लोग आपस में लड़ लड़कर फौजदारी करते और मुकदमे लड़ाते लड़ाते कट मरे । उनका पूंजी पसारा सब नष्ट हो गया और सचमुच उनके लिये वही अबसर आ गया जिसका बाप