पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६३

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परंतु न तो इन्होने किया और न आंख उठाकर वार्तालाप किया और न पंडितजी ने इनके पास भीड़ इकट्ठा होने दी । यों धीरे धीरे अपना लाभ न होता देखकर लोग लुगाइयों ने अपने आप इनके पास जाना बंन कर दिया । अब शरीर के खटके से निपटकर स्नान करने के अनंतर आठ पहर में एक बार जो कुछ भिक्षा भावे उसे गुडमड्ड करके खा लेने के सिवाय इन्हें कुछ काम नहीं । गुरू की बताई हुई काम-विकारों को शमन करनेवाली बूटी इस पहाड़ी पर भी बहुतायत से हैं। उसे ला लाकर यह अवश्य खाते हैं। और यों केवल चार घंटे की निद्रा के सिवाय इनका दिन रात भजन में बीतता है। बचपन से इनके गुरू ने "राम राम" का जो जप बतला दिया है उसे ही वे करते हैं और पद्मासन जमाकर गर्दन झुकाए, अपनी नासिका से चिपटती हुई पृथ्वी पर शुद्ध स्थान में लिखे हुए प्रणाव पर हृदय की दृष्टि, चर्मचक्षु नहीं क्येांकि ध्यान के समय ये मुँदी रहती हैं, जमाकर ध्यानावस्थित रहते हैं। गुरू जी ने एक बात और बतलाई है। वह यह कि ध्यान भगवान् श्री कृरुणचंद्र की बालजीला की मूर्ति का करना । जब, जिस समय तुम्हारा ध्यान और तुम्हार जप एक हो जायगा तब ही उस मूर्ति में से ध्रुव बालक की तरह भगवान हरि तुमको प्रकट होकर दर्शन देंगे । इसमें उन्हें इतने वर्षों के उद्योग से कहाँ तक संकलता हुई सो इन्होंने किसी को नहीं बतलाया और ऐसे गोपनीय मंत्र अधिकारी बिना किसी