पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६५

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देने कहा करते हैं कि संसार में इसके बराबर कोई ग्रंथ नह्नीं । दुनिया के पर्दे पर ऐसा कोई अब तक पैदा नहीं हुआ जो इसके सिद्धांतों को मिथ्या सिद्ध कर दे । इसमें प्रवृत्ति भी हैं और निवृत्ति भी। यह गृहस्थी के लिये भी हैं और संन्यास्त्रियों के लिये भी । इसका मनन करनेवाला दुनियादारी में रहकर भी जीवन्मुक्त है ! बस कर्तव्य की शिक्षा इसके समान किसी में नहीं । काम, क्रोध, मोह, लोभ और मद मत्सरादि विषों से छुड़ाने के लिये यह रामवाण' दवा है। कार्य करके भी न उसकी सिद्धि के लिये राग करना और न उसके प्राप्त न होने पर द्वेष । परमात्मा का स्वरूप इसमें बहुत अच्छी तरह दिखलाया गया है। हिंदूमात्र को इस हिए का हार बना लेना चाहिए।

बस ! इन्होंने भगवद्गीता पढ़ लेने के अनंतर या ग्रंथों को विचारना आरंभ किया है। योग साधन के लिये केवल वाचनिक शिक्षा किसी काम की नहीं । इसमें साधना अधिक और पढ़ना कम और साधना का अभ्यास अच्छे गुरू के बताए बिना हो नहीं सकता । जो केवल पुस्तक के भरोसे अथवा ऊटपटाँग गुरूओं से सीखकर प्राणायाम चढ़ाने लगते हैं। उनमें भूल से अनेकों को मस्तक-विकार हो जाते देखा है, अनेकों को क्षय हो जाते देखा है और अनेकों का शरीर फूट निकलता है। श्वास को रोकना मतवाले हाथी को बाँधना है। गैौड़बोले यद्यपि इस विषय को विद्यार्थियों के चित्त पर ठसाने