पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६७

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मृतक शरीर है यदी ििििििििििििििििििििििििििििििििििििििििचोल्ह कौवे अपना पेट भर लें तो कुछ भी सही !"

"नहीं महाराज, आप जैसे तपस्वी यदि दुनिया का उपकार करना चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं और यह शरीर परोपकार के लिये ही पैदा हुआ है । काम यह है कि एक जगह मठाधीश की गद्दी खाली हुई हैं। उनके शिष्य तो हैं परंतु इस योग्य नहीं हैं कि अपना कर्तव्य पाल सके' । इस लिये कितने ही धार्मिक सज्जनों ने किसी योग्य व्यक्ति को वह गद्दी दिलाने का प्रयोग किया है। मेरी समझ में आपसे बढ़कर योग्य नहीं मिल सकता इसलिये इस पद को स्वीकार कर सनातनधर्म की सेवा कीजिए, धार्मिक हिंदुओ का उपकार कीजिए और इस डूबती हुई नौका को पार उतारिए ।" ।'

“नही पिता ! यह काम मुझसे नहीं हो सकता !“दो एक साथ न होवे रे भाया, इंद्रियाँ पोषणि और मोक्ष जाया।" ऐसा प्रस्ताव करके मुझे मत फंसाओ । प्रथम तो मैंने जन्म लेकर अभी तक किया ही कुछ नहीं फिर यदि कुछ बन भी पड़ा हो तो उसे धूल में मत मिलाओ । जो दशा थोड़ों को छोड़कर आजकल के आचार्यों की, मठाधीशों की, स्थिर जीविका पानेवाले अपढ़ पुजारियों की और साधु वेशधारी मनुष्यों की हो रही है वही मेरे लिये तैयार है। संसार--त्यागियों को दुराचार में प्रवृत्त करने के लिये इसके शराब समझे। बस इस काम में पड़कर मैं दीन दुनिया दोनों का न रहूँगा। भाँग,