पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१६८

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गाँजा, चरस, चंडू तो उनकी साधारण सेवा है किंतु अब छिप छिपकर बोतलों भी उड़ने लगी हैं। अकेले दुकेले स्त्रियों से बातचीत करना तो उनमें दोष ही नहीं समझा जाता किंतु अब उनमें से अनेकों की व्यभिचार की, रंडीबाजी की भी शिकायत है । वे चोरी में फँसते हैं, डकैतों की मदद देने का उन पर इलजाम लगता है और इनमें से यदि सव ही दोषों से किसी तरह बच जायें, बचना कठिन तो हैं परंतु मान लीजिए कि बच भी जायँ तो द्रव्य संग्र करने का, भोग विलास करने का, आडंबर बढ़ाने का और हुकूमत करने औरों से पैर पुजवाने का क्या कम अपराध है ?"

“वास्तव में अपने जो दोष बतलाए वे यथार्थ हैं। थोड़ो को छोड़कर आजकल के आचार्य, मठाधीशों और पुजारियों पर इस तरह के इलज़ाम लगते हैं और उनकी कितनी ही जगह सत्यता प्रमाणित होने से लोगों के कानून बनवाकर देवोतर संपत्ति सरकारी निरीक्षण में डालने के लिये अदालन करने का हौसला हुआ है। जहाँ इस तरह का क्षेप उपस्थित हो जाय वहाँ राजा के हस्तक्षेप करने की आवश्यकता को मैं मानता हूँ। परंतु गवर्मेट विदेशो है । वह हजार मर्मज्ञ होने पर भी हमारे धर्म भावों को नहीं जान सकती इसलिये वह यदि कृपा करके इन बातों में हाथ नहीं डालना चाहती है तो हमारा उपकार ही करती है। परंतु आजकल के नवीन रोशनीवाले इसके पीछे आटा बांधकर पड़े हैं। वे इस द्रव्य