पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१७३

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बंद हो जाने पर ऐसे दुखित हुए जैसे अपने पिता के चिर वियोग पर । अरस्तु! उस दिन से पंडित जी को एक बार के सिवाया कभी पता न लगा कि वे कहाँ गए । उस बार भी यह सुना था कि वे दोनों हिमालय की गिरि-कक्षरा में तप करने के लिये चले गए। जिस मठ के लिये पद्धिस जी को ऐसा महंत रखने की आवश्यकता थी उसका क्या हुआ सो भी लिखने की आवश्यकता नहीं । एकाध प्रकरण से काम ले चलेगा और पोथी पहले ही पोथा हो गई । हां ! यदि कोई सुलेखक चाहे तो एक अच्छा स्वतंत्र झपन्यास लिख सकता। इस पुस्तक से उसे थोड़ा बहुत मसला भी मिल सकता हैं ।