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प्रकरण—६२
गोरक्षा का नमूना

छुट्टी के दिन पूरे होने पर हैं। जब नौकरी करनी ही निश्चित है अथवा यदि इस्तीफा देने की भी इच्छा हो तो क्या हुआ, चाहे जितना ऊँचे से ऊँचा ही पद क्यों न हो, परन्तु अंत में हैं तो दूसरे की नौकरी। गवर्मेंट की सेवा करने में यद्यपि नौकरों के साथ अच्छा बर्ताव होता है, उनकी समय समय पर उन्नति होती है और बुढ़ापे में पेंशन भी मिल जाती है परन्तु परिणाम में है दासवृत्ति हो! सरकार की क्या, रजवाड़े की क्या, साहूकारों की क्या, चाहे गए बीते की भी नौकरी करो परन्तु "जी हुजूर! हाँ साहब! जी हाँ साहब!" कहकर मालिक की हाँ में हाँ मिलनी ही पड़ेगी। ऐसे ऐसे अनेक कारणों का अनुभव करके और अपने नित्य और नैमित्तिक कार्यों में विघ्न पड़ता देखकर पंडित जी ने कांतानाथ से नौकरी का इस्तीफा दिलाकर घर के काम काज का बिलकुल बोझा उस पर डाल दिया। अब वह "स्याह करे तो स्याह और सफेद करे तो सफेद।" जो कुछ करे उसे अधिकार है। घर धन्धे में, कमाई में और सब ही कामों में नेक सलाह देकर रस्ते पर लगा देना, उसे इधर उधर भटकने देना और उसे धन्धे के, व्यापार के अच्छे