पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१७५

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अच्छे गुरू सुझा देना ही उनका काम है, और किसी बात से कुछ मततब नहीं । काँतानाथ भी ऐसा आदमी नहीं जो "मन न घर जानी" करे । वह जो कुछ करता है सब अपने बड़े भैया से पूछकर उनकी आज्ञा के अनुसार । उसके काम काज की समय समय पर जब उनके पास रिपोर्ट पहुँचती है तब दो काम पंडित जी अवश्य करते हैं। एक उसक अच्छे कामों की प्रशंसा करके उसका उत्साह बढ़ाना और दूसरे यदि उसके हाथ से कोई चूक हो गई हो तो उस पर उसे धमकाना नहीं, उसे बुरा भला न कहना ! यदि वह स्वयं अपनी चूक पर पछतावे और वह पछताता ही है तो "कुछ चिंता नहीं ! जो काम करते हैं वे भूलते भी हैं। जो धंधा करता है उसके लिये नुकसान पहले और नफा पीछे ।" कह कर वे उसका प्रयेाध कर देते हैं। हाँ ! समय पाकर उस भूल का कार बताकर आगे के लिये वे उसे चिता भी दिया करते हैं परन्तु बड़े प्यार के साथ । इनके पिता ने यद्यपि दोनों भाइयों का वैमनस्य न हो। इसलिये पहले ही से अच्छा प्रबंध कर दिया था किन्तु जहाँ राम भरत का सा रवार्थत्याग मूर्तिमान विराजमान है वहां वैसे प्रबन्ध की आवश्यकता ही क्या ? लड़ाई झगड़े वहाँ हुआ करते हैं जहाँ एक के स्वार्थ की दूसरे की गरज से टक्करें होती हैं । परन्तु पंडित जी के घर में दोनों भाइयों का स्वार्थ दूध बूरे की तरह मिलकर एक हो गया । बहुस्नेह के दूध में स्त्रियों की लड़ाई