पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१७६

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की यदि खाई पड़ जाय तो अवश्य दूध बूरा भी अलग हो सकता है परन्तु जहाँ प्रियंवदा और सुखदा सगी माँ-जाई बहनों से भी बढ़कर आपस में प्यार करती हैं वहाँ ऐसी खटाई का काम ही क्या ?

अस्तु । इन लोगों की अच्छी निभती है । परमेश्वर ऐसी सबकी निभावे । जिस घर में भाई भाई का, पति पत्नी का, देवरानी जेठानी का ऐसा प्यार है वहां अवश्य देवता रमण करते हैं। वह वर्ग से भी बढ़कर है ।

ये कांतानाथ घर के प्रबंध में, जमींदारी में और लेन देन में मुस्तैद हैं और पंडित प्रियानाथजी की छुट्टी समाप्त होने में केवल दो सप्ताह शेष रह गए। घर में आकर इन्हें कितने ही काम करने थे परंतु यात्रा के कारण न पहले अवकाश मिला और न अब । उस समय जाने की उतावल रही और अब थक जाने से सुस्ताने ही सुस्ताने में दिन निकल गए, यद्यपि घर आकर यह खाली एक दिन भी नहीं रहे। इन्होंने यहाँ आकर क्या किया सो विस्तार से प्रकाशित करने की आवश्कता नहीं क्योंकि गृहस्थ की छोटी मोटी बाते' किसी से छिपी नहीं हैं। हाँ ! दो चार जो बड़े बड़े काम थे 'उनका दिग्दर्शन गत पृष्ठों में कर भी दिया गया है ।

अब अपनी नौकरी पर जा पहुँचने के पहले पंडित जी के लिये केवल तीन काम शेष रह गए हैं। प्रथम प्रियंवदा और सुखदा की सौरी का समान रूप से प्रबंध करना । जब कांता