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दूध दे तो सानी और न दे तो सानी । बारहों महीना सानी मिलती हैं। वे गाएँ साफ सुथरी नहाई, धोई, ऋतु के अनुसार समय पर छाया में और समय पर खुले में रक्खी जाती हैं। बछड़े बछिया हृष्ट पुष्ट बलिष्ठ मानों हाथी के से बच्चे हैं। यदि वे बाजार में भाग जायं,तो रस्ता बंद कर दे । आधे से अधिक दुध उनका और शेष घर खर्च के लिये होता है ।

अपने घर की गौऔं की ऐसी सेवा देखकर, उनकी ह्मष्टता पुष्टता देखकर और उनके दर्शन करके पंडित जी की कली कली खिल उठी। उन्होंने गोमाता को प्राणाम किया, उनकी स्तुति की और जब बगीचे की गौओं के जाकर दर्शन किए तब वे आनन्द में मग्न हो गए। वहां भारवाड़ी नसल की कोई पचास' गाएं होगी। उनके साथ दस पंदरह लुली, लँगड़ी, बूढ़ी, ठाठ भी थी किन्तु सबकी सब मोटी ताजी, शरीर पर मैल का नाम नहीं ! दिन रात में न्यार जितनी उनसे खाई जाय खायं । उनका मन ही वैरी है । बाँटा सबको दिया जाता है। फूस के ही सही, कच्चे घर ही क्यों न हो परन्तु उनके रहने के लिये मकान तीनों ऋतुओं के योग्य हैं । एक ओर घास का गंज लगा हुआ हैं, कराई के ढेर पड़े हैं तो दूसरी ओर खली और विनोले से कोठे पर कोठे डट रहे हैं। उनको घराने के काम पर अलग, उन्हें निल्हाने, धुलाने और उनके बाँधने की जगह को साफ सुथरी रखने पर अलग नौकर हैं। गैएँ और बछड़े दो चार