पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१८०

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घंटे के लिये चरने भी जाते हैं किन्तु गोशाला में उनके लिये कमी नहीं है । उनका घी बेचा जाता है, दुध बेचा जाता है किंतु और से अच्छा होने पर भी बाजार भाव से महँगा नहीं दिया जाता । उनकी दवा दारू के लिये एक वक्स में ओषधियाँ भरी हुई हैं । जहाँ जरा सी एक गाय कुछ अनमनी दिखाई दी उसके इलाज के लिये हलचल मच जाती है, और इस तरह स्वर्ग की देवी भगवती कामधेनु इस संसार में आकर भी स्वर्ग-सुख प्राप्त कर रही हैं। पंडित जी ने इस प्रबंध को देखकर बहुत प्रशंसा करने के अंनतर तरक त्रुटि बतलाई-"सांड़ अच्छा नहीं है। अब तक नर अच्छा नहीं मिले संतान अच्छी नहीं हो सकती। मैंने तुम्हारे लिये एक अच्छं नर का प्रबंध भी कर दिया है। इस यात्रा में एक जगह एक आंकल कसाइयों का रुपया देकर छुड़ाया है। वह दो चार दिन में आनेवाला है। लो यह लो ।" कहकर उन्होंने कांतानाथ के बिलटी दी और तब बोले--

“भैया तुमने यह काम छेड़ा है और इसमें सफलता भी होगी । न हो तो न सही। हमारा कर्तव्य है ।"

"भाई साहब, इससे बढ़कर सफलता क्या हे।गी कि बस्ती भर में आजकल गोसेवा की धूम है। यहाँ गएँ तो सध गृहस्थी' रखते ही हैं। जिनके यहाँ नहीं थी वे भी मैंगवा रहे हैं । आस पास के गाँवों में चार पाँच जगह ऐसी गेशालाएँ खुल गई हैं। लोग मुझसे आ आकर पूछ जाते हैं