पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१८२

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नाबूद हो जायेंगी तो दूध घी कहाँ से मिलेगा, खेती कहाँ से करेंगे और गन्ना कहाँ से पात्रंगे ? बल्कि अब वे यहां तक मानने लगे हैं कि हिंदुस्तान में मंहगी और कहत इसी वास्ते पड़ता है ।"

"बड़े हर्ष की बात है। भगवान् तुम्हें सुयश थे । हाँ तो गोचारण की भूमि के लिये तो यहाँ कुछ कष्ट ही नहीं ?”

"नहीं बिलकुल नहीं । बल्कि राज्य इस काम के लिये बंजर के अन्छो जमीन लुक देने को तैयार है । जिन जमीन पर केवल गौणों की नार के लिये ज्वार की सृड़ की जाती है उस जमीन का लगान आधा लिया जाता है । अपने खर्च के लिये बेच दी जाय तो पूरा ।"

“यह और भी तुमने अच्छी खबर सुनाई ! बर परमेश्वर ने चाहा तो हमारे यहाँ अतिवृष्टि, अनावृष्टि, चूहे, टीड़ो, चोरभय और राज्यभय, यो छहों ईतियों की शिकायत न होगी । भले ही कोई करके देख ले ।"

"बेशक !" कहकर गौणों की पीठ पर हाथ फेरकर, उन्हें पुचकाकर अपनी ओर से दो दो सेर के लड्डू उन सबको खिलाने के अनंतर उन्हें प्रणाम कर करके मन ही मन मग्न होते हुए दोनों भाई अपने घर गए । तीसरी बात के विषय में परामर्श करने का उस दिन इन्हें अवसर ही न मिला। दोनों भाई घर जाकर सायंकाज़ के नित्यकृत्य में लग गए, देव-दर्शन में लग गए और भोजन करके आराम करने लगे क्यांकि गोशाला से लौटती बार रात्रि अधिक हो गई थी। अस्तु !