पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१८५

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जा एकता । जो किसी को सताकर न लेवे और जो मिल जाय उस पर संतोष कर ले, यह एक प्रकार की दूध भिक्षा कही जाती किंतु पंडित जी को इन्हे कामों की शपथ ही ठहरी तब जैसी एक पाई वैसे ही दस हजार । एक दिन रात्रि के समय इनको अकेला पाकर एक आदमी आया । उसने आकर कान उठाए,इधर उधर ताककर, आंखों से आँख मिलाए बिना, कुछ झिझकर, डरते डरते इनके सामने जय पुरी अशफियों का ढेर कर दिया । देखते ही इनकी आंखे खुली । इन्होंने एक बार सिर से पैर तक उस आदमी पर नजर डाली, फिर उस ढेर को घूरकर,अच्छी तरह देखा और तब यह उस आनेवाले से कहने लगे, किसी तरह के राग द्वेष से नहीं किंतु योंहों, स्वभाव से इन्होंने कहा---

"क्यों भाई ! आज यह क्या ?"

"साहब, यह आपके वास्ते मेरी तरफ से एक अदना सी नजर है । मामला आपको मालूम ही है। बस यह जान आपके हाथ में है चाहे जिलाओ, चाहे गर्दन ही क्यों न उड़ा डालो ।"

"हाँ ! मामला मुझे मालूम है और तुम भरोसा रक्खो कभी तुम्हारे साथ अन्याय न होगा। परंतु इनकी कोई आवश्यकता नहीं । इन्हें ले जाओ और फिर कभी मेरे सामने ऐसी बात का नाम तक न लेना ।"