पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९

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द्वार पर अड़कन बैठ गए । जो पद शिव सबकादिकों को भी दुर्लभ है वही उन्होने पा लिया । और पाया सो भी चिरकालीन । खैर ! उनका भी दावा था और गेवामी तुलसीदास जी का भी दावा था ।उनका दावा था इसी लिये उन्हें बांह पकड़कर कुएं में गिरते गिरते बचाया, कुएं में से क्या बचाया भवकूप में से बचा लिया और तुलसीदास ज़ी का दावा था इसी लिये उनकी विनय पर मुरली और लकुटी त्याग कर धनुष बाण धारण किया किंतु मुझ जैसा पामर किस विक्रय पर दावा करे । सूरदास जी ने जो कुछ वह केवल विनय के लिये, अपनी नम्रता दिखाने को किंतु मैं तो सचमुच वैसा पापी हूं, घोर पापी। मुझे उबारो तब आपकी दीन दयालुता सांची है। हे नाथ ! रक्षा करो ! इन दीन, हीन्य, मलिन की रक्षा करो । हे तारगातरगा ! मुझे उबारो ।

इस तरह कहते कहते पंडित जी फिर ध्यःनावस्थित, फिर निश्चेष्ट, नि:स्तब्छ। उनका देहाभिमान जाता रहा । आंखों में से अश्रुधारा बहने के अतिरिक्त उन्हें अभी कुछ खबर नहीं कि उनके शरीर की इा सगय स्थिति क्या हो रही है। इतने में दर्शको में से न मालूम किसनें, केवल पंडित जी का चित्ताने के लिये अथवा स्वभाव से ही कुछ गुनगुनाया। उसने क्या गाया, सो किसी ने सुना नहीं किंतु • हैं किग्न गोरी का ध्यान ? कहां हैं भूपकिशोर ?कहकर पंडित जी भनेर इधर उधर किसी खाई हुई वस्तु को ढूँढ़ने लगे।पंडितायिन उनकी