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प्रकरण--६४
व्यापार में सत्यनिष्ठा

पंडित जी जब नौकरी पर जाने लगे तब छोटे भैया से कह गए थे कि “देशी माल की एक डाइरेक्टरी तैयार कर लेना । जहाँ तक बन सके यह काम जल्दी हो जाना चाहिए ताकि जो उद्योग करला विचारा है उसका आरंभ मेरे वापिस आते ही कर दिया जाय । डाइरेक्टरी को तीन हिस्से में विभाजित करना । एक में कलों से तैयार होनेवाले समस्त पदार्थों का समावेश किया जाय, दुसरे में सब प्रकार की देशी कारीगरी हाथ से तैयार की जाती है और तीसरे में उन पदार्थों की नामावली दर्ज होनी चाहिए जो किसी दिन बड़े नामी थे किन्तु समय ने, सहायता के अभाव ने अथवा मिल उद्योगे ने तथा विलायती माल ने उनका बनना बन्छ कर दिया है। हाँ इस बात का अवश्य ख्याल रखना होगा कि वह माल उत्तेजना देने से अब भी तैयार हो सकता है या नहीं ! जहाँ तक बन सके नमूनों का भी संग्रह कर लेना ।" कहने में यह बात जितनी सीधी दिखलाई देती हैं करना उतना ही कठिन मालूम पड़ा । युरोपियन सज्जनों की बनाई हुई डाइरेक्टरियों से पहला हिस्सा तैयार करने में विशेष कष्ट नहीं उठाना पड़ा । दूसरे और तीसरे भाग के लिये मराठी