पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९१

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भाषा के "व्यापारी भूगोल" से और मिस्टर' मुकरजी की अँगरेजी किताब से तथा "भारत की कारीगरी* से मदद अवश्य मिला परंतु ये सब की सब कुछ कुछ पुरानी पड़ गई और इस पुस्तक में आज दिन तक की उन्नति का समावेश होना चाहिए । यदि समा चारपत्रों के विज्ञापनों का सहारा लिया जाय तो प्रथम तो उनमें ताकत की दवा और कामसंजीवन, सोजाट तथा उपदेश की रानवाण दवाओं की भरमार, देशी कारीगरी के नोटिस ही बिरले फिर कितने ही लोगों की नस नस में बेईमानी यहां तक भरी हुई है कि विलायती माल को देशी बताकर बेचते हैं, उनका ट्रेड मार्क बदल देते हैं, बिलायत से ही देशी नाम का ट्रेडमार्क लगाकर तथा बन्द माल मॅगवा लेते हैं और देशी और विलायती को मिलाकर देश के नाम से बेचते हैं। यदि विलायती बारीक सूज से देशी धोती जुड़े बनाकर उन्हें देशी के नाम से बेचा जाय तब भी गनीमत है। उनमें कुछ तो देशीपन है परंतु इस तरह की धोखेबाजी देखकर कांतानाथ एक बार घबड़ा उठे । उन्होंने इस काम के लिये समाचारपत्रों में नोटिस भी दिए किन्तु व्याख्यानबाजी से परोपदेश करने के आगे किसी के अबकाश ही कहाँ ? तब्ध इन्होंने कुछ खुशामद करके, कुछ दे दिलाकर और कुछ लोकोपकार समझाकर कितने ही आदमी ऐसे खड़े किए जिन्होंने इस काम में सहायता करके उसे संग्रह किया । यो जिस समय पंडित जी इस्तीफा देकर अपने घर