पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९५

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"अभी दस हजार’के बदले पाँच ही हजार से कार्य आरंभ कर दो । पिता जी के प्रताप से परमेश्वर की कृपा से धंधे पर तुमको रूपया मिल जायगा। कंपनी के नाम का, विज्ञापनबाजी का, और ऐसे ही और तरह का आडंबर बिलकुल मत करना । आडंबर लोगों को ठगनेवाला करते हैं। झूठे व्यवहारबाजे को अपनी सचाई जतलाने के लिये ऐसे ऐसे ढोंग करने पड़ते हैं। आरंभ में चाहे नाफा कम मिले, चाहे प्रसिद्धि देरे से हो और काम धीरा ही क्यों न हो परंतु व्यापार में सत्यनिष्ठा सब से बड़ी सहायक है । यदि तुम थेाड़ा नफा लेकर, एक ही भाव पर, घटाए बढ़ाए बिना नियत मूल्य पर नकद दामों से माल बेचोगे, यदि लोगों' को विदित हो जायगी अथवा यो कहो कि तुम ग्राहको के मन पर यह जमा सकोगे कि तुम्हारे यहाँ झूठ का नाम तक नहीं है, यदि एक बच्चा तुम्हारे यहाँ लेने आवे तब भी वही भाव और बड़ा आवे तब भी वही, तो लोग दौड़ दौड़कर तुम्हारे यहाँ आवेगे । हर एक चीज पर उनकी खरीद के मिती और असली कीमत खर्चे समेत्र लिखकर चिट चिपका दो । खरीदार स्वय’ उसके अनुसार दाम देकर ले जायगा । भाइ ठहराने का बिलकुल काम ही नहीं ! जब तुम उधार किसी को दागे ही नहीं तब रुपया डूबने का काम क्या ? माल वहीं मँगवाना जिसकी बिक्री हो ! जब औरों की तरह तुम अनाप सनाप नफा न लोगे तब तुम्हारा माल अवश्य सस्ता पड़ेगा ।