पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९६

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देशी माल टिकाऊपन के लिये प्रसिद्ध है। एक बार चाहे खर्च कुछ अधिक पड़े परंतु फिर फटने का, दुट जाने का और बिगड़ जाने का नाम तक नहीं जानता ! ये बातें तुम जब लोगों के चित पर ठसा दोगे तब तुम्हारी दूकान से माल खरीदते हुए और जगह कहीं ग्राहक न जायँगे ।"

“और दूकान का नाम ?"

"दुकान का नाम “राधानाथ रमानाथ ।" वही दादा जी और बापू जी का नाम । सब प्रताप उन्हीं का है।"

"उतम है। परंतु क्यों जी भाई साहब ! जब माल' पर खर्चे समेत असली कीमत लिख दी जायगी तब ब्याज ?"

" दो महीने का ब्याज तो खर्चे में शामिल कर देना और कोई चीज सिवाय दिनों तक पड़ी रह जाय तो उसके लिये ही चिट पर मिली लिखना हैं ।"

“अच्छा ! और माल बिका ही नहीं तो उसका टोटा कहाँ से निकलेगा ?"

"बिके हुए माल के नफे से । और न भी निकले तो भुगतना । तुम्हारी दूकान की मखमल का घाटा गजी खरीदने वाला क्यों भुगते ?"

“बेशक ! ठीक है। अब रुपए का ही सवाल बाकी है।"

“पांच हजार रुपया तुम्हारी भाभी का बैंक में जमा है । उसे उसके नाना के यहाँ से मिला था । ब्याज मिलाकर कोई सात आठ हजार हो गया है। आज कल बैंकों के