पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९८

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दोनों बालक पकड़ ले गए । स उन्होंने अम्मा को एक शब्द बोलने दिया और न किसी की कान पड़ी बात सुनने दी । पंडित जी ने उन्हें अपने पास बहुतेरा बुलाया किंतु अम्मा की गोदी छोड़कर उनके पास एक भी न अया। और लाचार होकर प्रियंवदा को वहाँ से उठ जाना पड़ा। वह गई और अपनी रेशभी नई निकोर साड़ी पर धूल में सने हुए दोनों बच्चों को दहनी और बाई गोदी में चढ़ाए हुए ले गई । इस प्रकार की लीला समाप्त होने पर प्रियानाथ ने कांतानाथ से कहा---

“बस रुपयों का तै हो गया ! अब कर्तव्य यह है कि गौड़बोले सहाशय से शुभ मुहूर्त पूछकर कार्य क आरंभ कर दो । “शुभस्य शीधम् ।" अब मसाला तैयार है तब जितनी ही जल्दी की जाय अछा है ।"

“बेशक ! परंतु एक बार व्यवस्था पर फिर गौर कर लेना चाहिए। मेरा विचार इस कार्य को तीन हिस्सों में बाँट देने का है। भारतवर्ष की मिलो का बना हुआ कपड़ा अथवा और और समान बिक्री का ढंग देखकर कमीशन सेल पर अथवा अधिक बिकी होती हो तो खरीदकर मँगवाया जाय । पहला हिस्सा तो यहीं समझना चाहिए। दूसरे हिस्से में दस्ती कारीगरी है । हाथ के बने कपड़े, बरतन आदि के जितने नमूने इकट्ठे हुए हैं उनमें से जो अवश्य ही बिक जाने योग्य हैं उनको तो थोड़ा थोड़ा मंगवा ही लेना और बाकी बचे हुओ को काँच की अलमारियों में प्रदर्शनी के लिये दूकान में