पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/१९९

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सजाकर रखना ! उन्हें लोगों को दिखाकर खरीदने की उतेजना देना । तीसरा काम इन दोनों से भारी है। उसमें खर्च और मेहनत दोनों से भारी है । परंतु साथ ही वह काम भी बहुत जरूरी है।"

"हाँ ! मैं समझ गया । वास्तव में बहुत बश्यक है। काम को छोटे किंतु दृढ़ पाए पर आरंभ करना चाहिए । पहले,सबसे पूर्व मालपुरे और टौक के नमदे ही ली । वहाँ नमदे और घूगियां अब भी बहुत नफीस बनती हैं। बनानेवाले अपढ़ बेशक हैं परंतु हैं कारीगर । उन्हें थोड़ा बहुत सिखाने से वे नमदे तो नगदे किंतु फेल्ट टोपियां भी अच्छी बना सकते हैं ।"

"वास्तव में यहा मेरा संकल्पन था और मैंने इसके लिये सांच्चे भी बनवा लिए हैं और रंग भी उन पर पक्का जमने लगा है ।"

“शाबाश ( साँचे और रंग का नमूना देख कर ) बहुत अच्छा हुआ !"

"इसी तरह बीकानेर की लोई, कोटे के डोरिये, बूंदी का रंग और कोई रजवाड़ा नहीं जो किसी न किसी तरह की कारीगरी के लिए प्रसिद्ध न हो । जयपुर तो कारीगरी के लिये केंद्र ही ठहरा ।"

इस तरह की सलाह करके जो ठहराव हुआ उसके अनुसार कार्तिक सुदी से अजमेर में वहीं "राधानाथ रमानाथ"