पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२०

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अर्द्धागिनी होने पर भी इसका एक बार कुछ मतलब न समझ सकीं ।हां उसने टटोल टटालकर अंत में मतलब निकाला कि किसी ने भीड़ में से बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू, भूपकिशोर देखि किन लेहू' यह चौपाई गाई है।

अस्तु ! अन पंडित जी फिर बोले--..इस स्वरूप में आज न भूपकिशोर हैं और न कृष्ण बलदाऊ हैं। भगवान के दस अवतारों में से चौबीस अवतारों में ले एक का भी स्वरूप इससे नहीं मिलाता ! भारतवर्ष में हजारों करता, लाखों मंदिर हैं। उनमें जो भगवान क्री प्रतिभाएं हैं किंतु इसमें कौन सा भाव कहा जाए? पुराणों में इसकी में कथा चाहे जिस तरह पर हो', जो कुछ होगी जगन्नाथ माहात्म्य सुनने के विदित हो जायगी किंतु इस समय तो मेरे अंत:करण में अचानक एक ही भाव का उदय हो रहा है। मानो बाबा मेरी और मुस्कुरा कर गवाही दे रहे हैं कि मेरी यह कल्पना केवल कवि कल्पना नहीं है। हाँ ! तो मेरी समझ में जो आया वह यही है कि गीता का उपदेश देकर उसे अर्जुन के अंत:करण पर अच्छी तरह जमाने के लिये भगवान् ने विराट स्वरूप के दर्शन कराएं, जैसे माता कौशल्या और माता यशोदा का मोह छुड़ाने के लिये भगवान् ने अपने मुख में, उदर में त्रैलोक्य को दिखला दिया उसी तरह यह मूर्ति विराट स्वरूप का, त्रिलोकी का चित्रपट है । यदि भगवान की कृपा से