पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२०२

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"बेशक ! दावा किया है और अब भी मेरा दावा है। मैंने उसके हाव, भाव और कटाक्ष से जान लिया था कि उसका मन निर्विकार है। जैसा तप उसके मुख़ पर वरुणा गुफा के निकट झलकता था वैसा ही आबू पर। फिर आप भी तो बताइए कि वह कहाँ तक निर्दोष था ?"

"हाँ ! मैंने मान लिया,मैं पहले ही से मान रहा हूँ कि तू निर्दोष है और जब तू दृढ़ है तब यदि उसका मन भी विचलित होता तो वह तेरा कर ही करता सकता था ?परंतु तो मन में संकल्प भी क्यों हुआ कि उसके पास रात्रि में जाना चाहिए और सो भी बेटा माँगने के लिये ?"

“संकल्प बेशक हुआ। और हुआ भी इसी लालसा से किंतु बूढ़ी माँ के परामर्श से हुआ और आपको और उन्हें साथ ले जाने के इरादे से ! इरादा वास्तव में हुआ और सो भी नारी-हृदय की उस अलौकिक वासना के कारण ! पुरुषों की अपेक्षा रमणियों को अपनी संतान पर अधिक प्रेम होता है । स्त्रियों की सृष्टि हीं इसलिये है कि प्रजा की वृद्धि हो । विवाह ही संतान की उत्पत्ति के लिये किया जाता है। माता ही पिता की अपेक्षा संतान के लालन पालन में अधिक कष्ट पाती है किंतु स्नेह भी उसका अलौकिक है, अमानुपी है, दैवी है । यदि दैवी नहीं है तो पशु पक्षी अपनी संतान का लालन पालन किस सेवा के लिये, किस कमाई के लिये करते हैं। केवल

आ० हिं०-१३