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संतान के लिये नारियाँ न मालूम क्या क्या कर डालती हैं, ताजियों के नीचे निकलती हैं, पीर पैगंबरों को, भूत प्रेतों को, कबरो और मसानों को पूजती हैं। यदि आप थोड़ी देर के लिये रमणी बन जायं अब आपके हमारा हृदय मालुम हो सके ।"

"नारी न बनने पर भी मैं हदय से उस अलौकिक वासना का अनुभव कर रहा हूँ । नारी भी तो एक बार तू बना चुकी है किंतु वासना वही करनी चाहिए जो अपने हाथ हु, उपाय वही करना चाहिए जो निर्दोष हो ।"

"वासना बेशक मेरी थी और उसका नतीजा भगवान् के हाथ था । और मनुष्य की यातना वासनाओ का परिणाम पश्मेश्वर के अधीन है। जब स्त्री जाति में संतान उत्पन्न करने की स्वाभाविक वासना है तब मैंने भी की तो बुरा क्या किया ? संतान बिना गोड सूनी, घर सूना और कुल सूना पाकर और अपना कर्तव्य पालन करने के लिये, अपना जीवन सार्थक करने की इच्छा से मैंने वैसा किया था ।"

"वास्तव में सत्य है। मैंने मान लिया कि तेरी इच्छा निर्दोष थी परंतु जो उपाय तैने सोचा था वह उचित नहीं था । भयंकर था । उसका परिणाम शायद यहाँ तक हो सकता था कि हम दुनिया में मुँह दिखाने योग्य न रहते ।"

"हाँ यह मेरी भूल है। यो तो मेरा इरादा आपके साथ लेकर जाने का था । आपकी सहगामिनी रहने में भय नहीं किंतु इरादा भी करना अच्छा नहीं ।"