पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२०६

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"भय न निकलने में मेरा कुसूर नहीं । प्रयाग और गवा की घटना ने मुझे भी मनवा दिया कि यह भी कोई योनि है । जिन बातों को तर्क साबित नहीं कर सकता वे अनुभव से प्रमाणित हेाती हैं। परंतु जैसे अनुभव ने यह साबित कर दिया कि ( रोकर ) माता के प्रेतयोनि मिली थी वैसे ही यह भी तो प्रमाणित कर दिया कि उसकी मौक्ष हो गई। फिर डरती क्यों है ?"

"सरकार डरना स्त्रियों का स्वभाव हैं । उनकी रक्षा करने का साधन है। एक बार जब भय अंत:करण में प्रवेश कर जाता है फिर उनका निकलना मुश्किल है। केवल भय ही नहीं, नारी-हृदय में बुरे वा भले जैसे संस्कार अंकित हो जाते हैं उनका निकलना कठिन है। रमणी-हृदय वज से भी कठोर और कमल से भी कोमल है। परंतु क्यो जी, उसकी ऐसी योनि क्यों मिली जिन्होंने आजीवन कोई पाप नहीं किया ? जिन्होंने पचास वर्ष अपने सतीत्व की रक्षा करके विधवापन में निकाल दिए और जो सदा ही भगवान् के भजन में अपना मन लगाए रहती थीं उन्हें ऐसा दंड ? कुछ समझ में नहीं आता।"

"अवश्य ऐसा ही है। वह मेरी जन्मदात्री न सही परंतु माता से भी बढ़कर थी । उन्होंने हमारा लालन पालन किया है। यह शरीर उन्हीं के अनुग्रह से है । वह हमें पेट के बेटों से भी बढ़कर समझती थीं। उन्होंने जब से जन्म लिया तब से कभी सुख नहीं पाया था। हमारे दु:ख को अपना दुःख और