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प्रकरण—६६

बालशिक्षा और परोपकार व्रत

भोला कहार पहले ही कामचोर था । अब उसे अच्छा बहाना मिल गया। अपने अपने मालिक की घोतियाँ धोने का काम तो दोनों बहू रानियाँ करती हैं, बरतन चौका करने और झाड़ू बुहारे के काम पर, पानी भरने पर दो नौकरनियाँ अलग हैं किंतु कामचेर भोला से दोनों मालकिन की धातियाँ धो देना भी नहीं बनता है । घंटों तक धोतियाँ पड़ी पड़ी पानी में मट्टी से और धूल से खराब हो जायें तो कुछ परवाह नहीं । “निपूता घोता अच्छी तरह है। खूब कछारकर धोता है इसलिये उसके भरोसे छोड़ देती हैं। नहीं तो हम ही धो डालें तो क्या हमारे हाथ घिस जायं ।" कहकर प्रियंवदा कई बार उसे फटकारती है, गुस्से में आकर सुखदा दोनों धोतियो को जेठानी के मना करने पर भी धो डालती है। और उसकी ऐसी हरकत देखकर कांतानाथ कभी कभी उसके एकाध चपत भी जमा दिया करते हैं परंतु उसके लिये ऐसी फरकार, ऐसे ताने और ऐसी चपते "हाथी पर अर्क फल की मार" की तरह कुछ असर थोड़े ही करती हैं ? बहाने बनाने को तेा भोला मानो टकसाल ही ठहरा ! यदि उसे कहीं भेजने की आवश्यकता पड़ी तो बहाना और जो कहीं घर का ही