पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२१२

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सही परंतु लँगोट का सच्चा है, बेईमान नहीं । यदि अगिनित रूपए दे तो भी क्या मजाले जो एक पाई का फर्क पड़े।" सही उनका भोला के लिये सर्टिफिकेट है, और हजार उनके नाराज रहने पर भी इसी की बदौलत वह मौज करता है । फिर यदि पंडित जी नाराज होकर इसे निकालने को भी तय्यार हो जायं तो इसकी सिफारिश करनेवाले बहुत हैं। दोनों बालक तक तय्यार हैं। बस इसलिये उसे निश्चय है कि "मैं निकाला हरगिज भी न जाऊँगा ।" और जब उसके जोरू न जाता अल्ला मियाँ से नाता" है । उसे पर्वाह भी क्या !

खैर ! इसे यदि परवाह नहीं है तो न सही परंतु पंडित जी को भय है कि कहीं इसकी कुसंगत से बालक बिगड़ न जायँ । इस समय उनकी कच्ची उमर है । जैसा बाहर का संस्कार होगा वैसी ही उनका चरित्र गठेगा। कुम्हार मिट्टी के लोंटे को चाक पर रखकर जैसा बरतन बनाना चाहे वैसा ही बन जाता है । ये बच्चे मिट्टी के लोदा, भोला कुम्हार और चाक इनका खेल । इस बात से इन्हें पूरा खटका है। क्योंकि इन्हें निश्चय है कि गौड़बोले की शिक्षा का, माता पिता की रक्षा का नन्हों पर उतना असर नहीं होगा जितना भोला के कुसंस्कारों का । सुखदा इन बातों की बारीकी समझनेवाली नहीं, कांतानाथ लञा के मारे चुप रह जाते हैं, प्रियंवदा सब बातें जानने पर भी "बालकों का मन मैला न होने पावे ।" इसलिये दर गुजर करती है। इसलिये पंडितजी