पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२१४

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है । यदि कुछ समझाया जाता है तो रो देता है और जब कभी जी मे आता है तो भाग जाता है । उसे यदि कोई मनाने जाता है तो नहीं आता है किंतु जब भूख के मारे आतें बैठने लगती हैं तब झख मारकर आ जाता है। पंडित जी यदि उसे समझाकर गौड़बोले की सेवा के लिये नियत करते है तो ---"जिसने मेरी परसी थाली छीन ली उसकी कभी चाकरी न करूंगा । काटकर टुकड़े कर डालो तो इस डोकर की धोती न घोऊँगा ।" कहकर चुप हो जाता है,और जो कही कांतानाथ उसे अजमेर ले जाना चाहें तो "मैं इस घर से न निकलूंगा जीते जी ( पंडित जी के चरणों को छूकर ) इन्हें कभी न छोड़ूंगा । हाँ ! इनके साथ लंका जाने को भी तय्यार हूँ । यो कहकर रो देता है । खैर ! जब उसका स्वभाव ही ऐसा है, जब उसके लिये खाने पहनने की कभी नही है तब उसे यों ही रहने दीजिए। उसे न अब इस किस्से से मतलब है और न प्यारे पाठक को उनका विशेष हाल जानने की आवश्यकता है ।

हाँ ! इस जगह इतना लिख देना चाहिए कि अब दोनों बालकों की शिक्षा दीक्षा का अच्छा प्रवंध हो गया है । जो महाशय चिंत्त लगाकर इन किस्से के “अथः" से लेकर “इति’’ तक पढ़ेंगे उन्हें यह जतलाने की आवश्यकता नहीं कि कमलानाथ और इंदिरानाथ के शिक्षा किस तरह की दी गई । “हिंदू गृहस्थ" में शिक्षा का ढाँचा उनके लिये पहले