पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२०९)

हैं ! जो कुछ किया परमेश्वर ने किया है। वही नारियों के शील की रक्षा करनेवाला है।" कहते हुए उसके सिर पर ‘हाथ फेरकर उसे शांत कर देते हैं ।

पंडित दीनबंधु अब यहाँ आते हैं तब बच्चों के लिये कुछ अवश्य लाते हैं। "वह ना ना !" कहने पर भी उन्हें देते हैं और जो कुछ देते हैं वह उनकी परीक्षा लेकर । परीक्षा भी उनकी कड़ी है, पुस्तक-संबंधिनी नहीं, व्यावहारिक । और वह मिठाई नहीं देते, वैसा नहीं देने और कपड़े नहीं देते । अपनी यात्रा में जहाँ से उन्हें कोई ऐसी चीज मिल जाय जो "कम खर्च वाला नशीन’ हो और जिससे बालों का ज्ञाने बड़े वही उनका इनाम हैं । बस इस तरह उनकी आनंद से गुजरती है। हिंदी के कितने सुलेखक महाशय “डिटेक्टिव कहानियाँ लिखने और अनुवाद करने के साथ यदि पंडित दीनबंधु जैसे सच्चे परोपकारी का किसी उपन्यास में चरित्र अंकित करें तो अधिक उपयोगी हो सकता हैं । लेखक की यही प्रार्थना है।

आ़ हिं०-१४