पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२१९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
प्रकरण--६७
होली का त्योहार

पंडित प्रियानाथ जी विद्वान् थे, भगवान् के अनन्य भक्त थे, सच्चे सनातनधर्मावलंबी थे, व्यवहारकुशल थे और कुशाग्रबुद्धि भी । उनकी मानसिक शक्ति असाधारण थी और यों वह हिंदूपन का एक उत्तम नमूना थे किंतु क्या इन गुणों के साथ वह रोनी सूरत थे ? यद्यपि प्रियंवदा के साथ समय समय पर थोड़ा बहुत हँसी मजाक प्रकाशित होता रहा है किंतु छासठ प्रकरण रंग डालने पर भी अब तक जब उनके विनोदीपन की बानगी नहीं दिखलाई गई तब यदि पाठक उन्हें "रोनी सूरत" समझ लें तो उनका दोष क्या ?

अस्तु । यदि पंडित जी इन गुण के साथ विनोदप्रिय न हाँ,स्वयं हँसना और दूसरे को हंसा देना न जानते हो और सदा ही गंभीर बने बैठे रहें तो वह “आदर्श हिंदू" काहे के ? मुसलमान ताजियादारी करते हैं, ईसाइयों में भोजन के समय चार आँसू गिराना भगवान की कृतज्ञता है किंतु हिंदुओं के यहाँ कोई त्योहार ऐसा नहीं, श्राद्ध-पञ्च तक ऐसा नहीं, जिसमें रोने की आवश्यकता हो । हिंदुशे के प्रत्येक धर्म में, संस्कार में और काम काज में आनंद है। हँसी ठट्टा शादी के दिमाग को शोक संताप से रहित करके आंनद में मग्न