पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१३)

पत्ता, राम राम ! भगवान् के लिये ऐसा कहकर पाप.पंक में निमझ कौन हो ? फिर भी दर्शन करके मन पर एक आस्त्रधारण' प्रभाव पड़ता है। वह वाणी के अगोचर है। भयानक मूर्ति को देखकर आदमी डरा करता हैं । डर के मारे आंखें बंद कर लेता है किंतु इन पर से आंखे हटते ही नहीं । इन चरणों को छोड़ने को जी नहीं चाहता । परमेश्वर ऐसा ही करे । यदि ऐसा हो तो परम सौभाग्य समझो। इस जन्म में तो इसने ऐसा पुण्य ही क्या किया है जो ऐसा हो। ईश्वर की इच्छा !"

वास्तव में यथार्थ है। परंतु क्यों महाराज, आप समझे?ये तीनों विग्रह किन किन के हैं ? एक जगन्नाथ दूसरे बलभद्र और मध्थ में सुभद्रा ! सुभद्रा कौन ? क्या श्रीकृष्णचंद्र की भगिनी अर्जुन की कुलबधू ? नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता ! वह एक सुगृहिणी होकर पति चरणों को क्यों छोड़ती यह सुभता नदी भद्रा है। लोगों ने भ्रम में कहना आरंभ कर दिया है । परंपरा में चाहे ऐसा ही कहते चले आवें किंतु यह श्रीकृष्णचंद्र की आठ पटरानियों में से एक हैं। पटरानियों में से हैं तब ही भगवान् के वामाग में स्थान लिया हैं । अच्छा कोई हो किंतु मेरी समझ में भगवान् जगदीश ब्रह्मा, भगवान बलगद्र जीव और भगवती सु-भद्रा माया हूँ ।”

इस तरह की बातें करते करते पंडित जी और गौड़बोले भीड़ से बचाने के लिये पंडितायिन को बीच में लिए हुए बूढा, बुढ़िया और भोला,गोपीवल्लझ को साथ लेकर भग