पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२२३

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“खबरबार, पिचकारी का एक भी छींटा लगा तो अभी खोपड़ी फोड़ दूंगा। क्या वाहियात त्योहार है। बेहूदगी की हद हो गई। इस बेहयाई का भी कुछ ठिकाना है ?"

"नहीं साहब ! बेहूदगी नहीं। बेहयाई नहीं । ऋतुराज वसंत की लीला है । बेहयाई और बेहूदगी का बुखार निकाल देने का दिन है । भगवान् पंचशायक का केवल एक ही दिन में उभरा हुआ जोश निकालकर साल भर तक सभ्यता से रहने के लिये शुभ मुहूर्त है, देशी गंवारों की होली और विदेशी विद्वानों का "एप्रिल फूल" है, काम-विकारों का उफान रोकने के लिये पानी के छीटे हैं ।"

"कुछ भी हो । है बेशक वाहियात ! ब्राह्मण और भंगी चमार सब एकाकार ! कीचड़ और पनाले का त्योहार ! गाली गलौज का सत्कार और दुराचार में प्रवृत करने का साधन ।"

"नहीं लाइव ! वाहियात नहीं ! यह हिंदुओं का चार में से एक जातीय त्योहार है। जो लोग छुआछूत से, जातिभेद से अथवा पंति-भेद से देश का विनाश मानते हैं उनके लिये मुँहतोड़ जवाब है। यह त्योहार ड़के की चोट दिखला रहा है कि हिंदुओं में सैकड़ों जातियाँ होने पर भी, आप में खान पान का व्यवहार न होने पर भी और छुआछूत की असाधारण छीछालेदर होने पर भी सब एक हैं । धार्मिक कामों में एक हैं, सामाजिक काम में एक हैं और इतने