पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(२१५)

एक हैं जितने इन बातों के वाहियात समझनेवाले एक नहीं ।आपके एके में लखपती कंगाल के, अफसर माता को ग्रार और बडा़ छोटे के पास बिठलाने से भी धृणा करते हैं किंतु यहाँ आज राजा रंक एक हैं ।

"अच्छा, परंतु है तो कीचड़ पनाले का ही त्योहार ?"

"जिनके लिये है उनके लिये हो भी सकता है किंतु कीचड़ पनाले का शुद्र के लिये, अंत्यजे के लिये अथवा शराबियों के लिये होगा। द्विजे के लिये,अंत्यजों शूद्रों के लिये अवीर है, गुलाल है, कुंकुमें हैं और रंग है । होली सबके लिये समान है, उमंग एक सी है किंतु अधिकारी-भेद से सामान जुदे जुदे हैं । आप जब दरबार में जाते हैं तब कुर्सी पाते हैं और गेंदा धोबी चौखट तक भी नहीं पहुँचने पाता ।"

‘और वही विद्वान हो तो हमारे बराबर कुर्सी पावेगा ।"

“हाँ होली के लिये तो ऐसा हो सकता है कि गेंदा शराब पीना छोड़ दे और कीचड़ के बदले अबीर काम में लाने लगे किंतु दरबारी कुर्सी उसे नहीं मिलनी चाहिए। आप आप ही हैं और धोवी धोबी ही है। ऐसा न हो तो आपको उसे अपनी कुर्सी देकर धोबी बनना पड़ेगा ।"

‘अच्छा माना मैंने कि आपकी यह दलील ठीक है परंतु वाही तबाही बकना, शिष्ट पुरुषों के सामने,स्त्री-समाज के आगे गालियाँ बकना, कबीर गाना किस काम का ? यह बेहूदगी तो व्यभिचार फैलानेवाली है।"