पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२३१

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मरना बराबर है। पर हाय ! अब भी ते मेरे फूटे मुंह से भगवान् का नाम नहीं निकलता । अब भी, इतने कष्ट पाकर भी बुरी बुरी बातों की ओर चित्त दौड़ता है। अब अगर वे महात्मा जी एक बार फिर दर्शन दें तो कुछ उपदेश मिल सकता है। हाय ! मैं बहुत दुःखी हूँ । रामजी मुझे मौत दें । अब सहा नहीं जाता । हाय मरी ! कोई बचाओ !" कहतीं हुई मथुरा ज्यों ही मूच्छित होकर जमीन पर गिरने लगी एक व्यक्ति ने उसे सँभाला, गिरने से बचाकर धरती पर बिठलाय ,आखों पर जल छिड़ककर उसे सचेत किया और तब उनसे पूछा---

"महात्मा कौन ?”

“हाँ ! आपने सुन लिया ? ( देखकर, अच्छी तरह निहार लेने के अंनतर पहचानकर ) आप बिना मेरे प्राण बचानेवाला कौन ? सचमुच आपने बड़ा उपकार किया है। मेरे उपकार के बदले उपकार ? आप बड़े महात्मा हैं । मैंने आप जैसे सज्जन को सताया है। महाराज मुआफ करो ।"

"हैं! मुझे सताया है ? कब्द ? मुझे याद भी नहीं ?"

“बेशक आपको याद न होगी ! सज्जन दूसरों का उपकार करके याद नहीं रखा करते हैं परंतु मेरे लिये तो कल की सी बात है। मेरे हिए में होली सी जल रही है ।"

"कहना चाहती है तो कह क्यों नहीं देती ? और न कहना चाहे मत कह । मुझे सुनने की परवाह नहीं, आवश्यकता