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प्रकरण--६९
प्यारा सिंगारदान

“पंडित जी ! पंडित जी होत ! अरे पंडित जी ! यहाँ कोई है भी ? किवाड़ा खोलो! किंवाड़ा! वाह खुब आदमी हैं! भीतर सुरबुर सुरबुर बातें करते हैं मगर किंवाड़ा नहीं खोलते । (किवाड़े में लात मारकर ) ये साले टूटते भी तो नहीं हैं । एक, दो, तीन, चार लाते मारी और खूब जोर जोर से मारी परंतु किवाड़े खुले नहीं। आनेवाले ने दो चार गालियाँ भी सुनाई' परंतु जवाब नहीं मिला । “खोलूं कैसे ? अनजान आदमी है । उसके सामने जाने में लाज आती है। सरकार का प्रणायाम चढ़ रहा है। अभी उतरने में दस मिनट चाहिएँ । निपुते भोला का कहीं पता नहीं। मुआ पड़ा होगा कहीं चंडूखाने में। रामप्यारी और राधा दोनों ही गायब हैं। अब खुलवाऊँ भी तो किससे ? अरे नन्हा जाकर तूही कुंडी खोल आ !" कहकर प्रियंवदा ने बच्चों को समझाया परंतु उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया। यदि जोर से कहकर समझाती है तो ध्यान छूटता है और धमकाती है तो दोनों लड़के रो रोकर घर भर डालेंगे । बस सुरबुराइट इसी बात की थी। अंत में हारकर खिड़की में से देवरानी की ओर उसने इशारा किया और वहाँ से कांतानाथ ने आकर

आ० हिं०-१५