पृष्ठ:आदर्श हिंदू ३.pdf/२३६

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साँचा:RH

"क्या काजल, टिकुली, सिंदूर और मेरी मैं लगाऊँगा ?"

"नहीं आप नहीं ! मैं ! मेरे लिये सौभाग्य-द्रव्य है और आपकी बदौलत है ।"

"अच्छी बात है ।"

“हाँ बात तो अच्छी ही है परंतु कई वर्षों में क्यों छाया ?"

"इसलिये नहीं आया कि तुझे गंगातट पर जब लठैतों ने पकड़ा तब तू चिल्लाई नहीं ! तू चिल्लाती तो शायद कोई मदद को भी आ पहुँचता ।"

“हैं ! तो आपकी अदालत ने मुझसे सफाई के जवाब लिए बिना ही सजा दे दी ।"

"नहीं ! हमारी अदालत ने नहीं दी । संयोग की अछालत ने दी ।"

“ठीक । तो इस मुए संयोग ने ही मेरी जवान बंद कर दी । न वे क्लोरोफार्म सुंघाते और न मैं बेहोश होती ।"

“ठीक है ! मुनासिब है।"

"हाँ मुनासिब तो है परंतु इस ट्रंक के आने में इतनी देरी क्यों हुई ? मथुरा स्टेशन पर पुलिस पर आपका प्रभाव पड़ता देखकर तो मैंने समझा था कि पाँच सात दिन में आ जायगा । उस समय अन्य आपने पुलिस को इतना दबदबा दिखलाया था तो फिर भीड़ में से निकलने के लिये उससे मदद क्यों न ती १ यह तो मैं तब पूछना ही भूल गई थी ।"